[VIEWED 13323
TIMES]
|
SAVE! for ease of future access.
|
|
The postings in this thread span 2 pages, go to PAGE 1.
This page is only showing last 20 replies
|
|
Rahuldai
Please log in to subscribe to Rahuldai's postings.
Posted on 07-22-08 4:43
PM
Reply
[Subscribe]
|
Login in to Rate this Post:
0
?
|
|
झरीमा परी
यो झरीमा परी झै लाग्ने को हो तिमी सुन्दरी बूंद बूंद भै झरुं कि आफै, स्पर्श पाउन घरी घरी
भक्तहरुको उपासना हो या प्रक्रितीको सुन्दर सिर्जना तिर्खाएको मरुभूमीको हाल झैं भयो मनको तिर्सना
यो झरीमा परी झै लाग्ने को हो तिमी सुन्दरी बूंद बूंद भै झरुं कि आफै, स्पर्श पाउन घरी घरी
प्रभाती उषाको के हुन्थ्यो गाढा ओंठको त्यो लाली मोहनी लगायौ कि तिमीले हेरीरहुं झै लाग्ने खाली
यो झरीमा परी झै लाग्ने को हो तिमी सुन्दरी बूंद बूंद भै झरुं कि आफै, स्पर्श पाउन घरी घरी
गाजलु आँखामा नशालु भाखा पग्लिन्छ ढुंगा पनि झुकी लुक्छ काँडा भित्र लजाइ फूल को थुँगा पनि
यो झरीमा परी झै लाग्ने को हो तिमी सुन्दरी बूंद बूंद भै झरुं कि आफै, स्पर्श पाउन घरी घरी
|
|
|
The postings in this thread span 2 pages, go to PAGE 1.
This page is only showing last 20 replies
|
|
Narayangarh suburb
Please log in to subscribe to Narayangarh suburb's postings.
Posted on 07-22-08 7:04
PM
Reply
[Subscribe]
|
Login in to Rate this Post:
0
?
|
|
"झुकी लुक्छ काँडा भित्र लजाइ फूल को थुँगा पनि"
लजाएर हुन या त्रासले काडा त नीकै तीखारीएका छन सन्तुस्टीले हो या पीडाले आँखा ती लोलाएका छन
राहुल दाई नमस्ते गरे है। यहाँ पनि नीकै झरी परी रहेको छ। हुन त बर्सा नरोकीएको धेरै भयो तर फरक एती छ आज आकाश को पालो छ।
|
|
|
serial
Please log in to subscribe to serial's postings.
Posted on 07-22-08 9:11
PM
Reply
[Subscribe]
|
Login in to Rate this Post:
0
?
|
|
बूंद बूंद भै झरुं कि आफै, स्पर्श पाउन घरी घरी
वाह ठुल्दै वाह गज्जब गयो
|
|
|
Rahuldai
Please log in to subscribe to Rahuldai's postings.
Posted on 07-23-08 9:05
AM
Reply
[Subscribe]
|
Login in to Rate this Post:
0
?
|
|
रबी जी , बूंद बूंद भै झरुं कि आफै, स्पर्श पाउन घरी घरी यो पंक्तीमा त मलाई पनि अत्मसन्तुष्टी भाथ्यो। अली चर्को भयो कि भन्ने डर पनि।
पिया जी, अर्थ जे लगाए नि सुन्दरता बयाँन न हो, सुन्दरै रहन्छ। आँखा चिम्लेर हेर्दा अझ सुन्दर देखिन्छ।
पर्बते जी,
झरी मा पारी देखेको ठीक साँचो हो, किचकन्ने त होइन होला हो।
तिका: जी,
संभवत राजनैतीक मजाक गर्ने धागो यो होइन जस्तो लाग्यो। तपाईं को अनुवाद भने प्रसंसानीय नै छ।
नारायण जी, वाह ! वाह ! तपाईं को भाव लाई सलाम गर्छु। झरी त कहिले रोकिएथ्यो र फरक यती हो कि कहिले आँखाबाट झर्छ कहिले मुटु बाट।
लहरे जी,
मलाई नि वाह! भन्न मन लायो।
बूंद बूंद भै झरुं कि आफै, स्पर्श पाउन घरी घरी
|
|
|
Birkhe_Maila
Please log in to subscribe to Birkhe_Maila's postings.
Posted on 07-23-08 9:10
AM
Reply
[Subscribe]
|
Login in to Rate this Post:
0
?
|
|
गजब को गीत गयो ठूल्दाई!! वाह!!
कताबाट रोमान्टिक कुरा फुरेछ ठूल्दाई?
बूंद बूंद भै झरुं कि आफै, स्पर्श पाउन घरी घरी!!
|
|
|
ritthe
Please log in to subscribe to ritthe's postings.
Posted on 07-23-08 9:19
AM
Reply
[Subscribe]
|
Login in to Rate this Post:
0
?
|
|
ओहो दाई किच्कन्ने कै फेला पर्नु भयो कि क्या हो? अत्ती सुन्दर बर्णन गर्नु भयो नि
दामी छ दाई ल !!
"हुन त बर्सा नरोकीएको धेरै भयो तर फरक एती छ आज आकाश को पालो छ।" वाह नारन वाह !
|
|
|
dipika02
Please log in to subscribe to dipika02's postings.
Posted on 07-23-08 9:35
AM
Reply
[Subscribe]
|
Login in to Rate this Post:
0
?
|
|
गाजलु आँखामा नशालु भाखा पग्लिन्छ ढुंगा पनि झुकी लुक्छ काँडा भित्र लजाइ फूल को थुँगा पनि
वाह! वाह! वाह! ठुल्दाइ हाम्रो भाउजु को यती मिठो बर्णन !!!! भाउजुलाई बधाई!!!
|
|
|
सान्नानी
Please log in to subscribe to सान्नानी's postings.
Posted on 07-23-08 9:36
AM
Reply
[Subscribe]
|
Login in to Rate this Post:
0
?
|
|
ati sundar thuldai :) bhaujulai jharima bhijeko dekhera yasto lekheko ho?
|
|
|
Nepal ko chora
Please log in to subscribe to Nepal ko chora's postings.
Posted on 07-23-08 9:45
AM
Reply
[Subscribe]
|
Login in to Rate this Post:
0
?
|
|
"बूंद बूंद भै झरुं कि आफै, स्पर्श पाउन घरी घरी!!"
वाह वाह ठुल्दाइ, गजब को छ।
|
|
|
Rahuldai
Please log in to subscribe to Rahuldai's postings.
Posted on 07-23-08 11:55
AM
Reply
[Subscribe]
|
Login in to Rate this Post:
0
?
|
|
बिर्खे जी ,
रोमान्टिक हुन, रोमान्टिक फुर्न नि समय र साइत हुन्छ र बिर्खे बा। जवानी त अझै गाछैन नि। चिलिम ब्रेक मै फुरेको हो यो पनि।
रिट्ठेजी, किचकन्ने को बर्णन यस्तो हुन्छ र भन्या। एक दिन किचकन्ने भेट्छु र अर्को गीत गजल लेख्छु।
दीपिका जी,
भाउजु कै बर्णन हो जस्तो लाग्दैन। भाउजुको पाउजु पनि यो भन्दा सुन्दर छ।
सान्नानी जी ,
भाउजु झरी म नरुझिकनै परि जस्ती देखीन्छे।
नेप्चे जी , वाह ! वाह ! कबिता लाई कि ठुलदाई लाई ?
|
|
|
बिस्टे
Please log in to subscribe to बिस्टे's postings.
Posted on 07-23-08 11:59
AM
Reply
[Subscribe]
|
Login in to Rate this Post:
0
?
|
|
वाह वाह ठुल्दाइ गज्जप को छ बूंद बूंद भै झरुं कि आफै, स्पर्श पाउन घरी घरी मलाई पनि त्यसरी नै झर्न मन लाग्यो
|
|
|
Gyani_keta
Please log in to subscribe to Gyani_keta's postings.
Posted on 07-23-08 12:21
PM
Reply
[Subscribe]
|
Login in to Rate this Post:
0
?
|
|
awesome poem.....haven't read such a nice piece in a long time....good work
|
|
|
Rahuldai
Please log in to subscribe to Rahuldai's postings.
Posted on 07-23-08 1:35
PM
Reply
[Subscribe]
|
Login in to Rate this Post:
0
?
|
|
बिस्टेजी , मन पानी पानी भएछ जस्तो छ, झर्न मन लाग्यो रे।झरम झरम हो, त्यसको आनन्द बेग्लै हुन्छ।
ज्ञानी केटा जी, मन पराइ दिनु भएकोमा आभारी छु।
|
|
|
तिका:
Please log in to subscribe to तिका:'s postings.
Posted on 07-23-08 2:15
PM
Reply
[Subscribe]
|
Login in to Rate this Post:
0
?
|
|
तिका: जी,
संभवत राजनैतीक मजाक गर्ने धागो यो होइन जस्तो लाग्यो।
मालुम है मालुम है
तपाईं को अनुवाद भने प्रसंसानीय नै छ।
धनवाद धनवाद
लेकिन, हमने राजनैतीक मजाक नहि किया है, वास्तविकता बताया है । खेँ खेँ खेँ खेँ
हम ने ये खेँ खेँ खेँ खेँ कर्ना तो वहि चोतारी से सीखा है, लगता है फिर इकबार सबको गाली देनेको लिए चोतारी मे जाउँ - खेँ खेँ खेँ खेँ , नीद हराम किया था ना हम ने ? याद आया ?
|
|
|
OcRam
Please log in to subscribe to OcRam's postings.
Posted on 07-23-08 4:42
PM
Reply
[Subscribe]
|
Login in to Rate this Post:
0
?
|
|
धेरै राम्रो भक्तहरुको उपासना हो या प्रक्रितीको सुन्दर सिर्जना
|
|
|
syanjali
Please log in to subscribe to syanjali's postings.
Posted on 07-23-08 5:39
PM
Reply
[Subscribe]
|
Login in to Rate this Post:
0
?
|
|
Translation was as good as the original, though the last line made it "majaa ko kir kira".
|
|
|
pjna007
Please log in to subscribe to pjna007's postings.
Posted on 07-23-08 6:00
PM
Reply
[Subscribe]
|
Login in to Rate this Post:
0
?
|
|
यसो कुरा बुझ्दा केटी पाटी ले "गाजलु आँखामा ...." लाई अनी केटा पाटी ले "बूंद बूंद ...." लाई wahh wahh भन्ने जस्तो छ, म पनि त्यसइ भन्नु पर्यो :
गाजलु आँखामा नशालु भाखा पग्लिन्छ ढुंगा पनि झुकी लुक्छ काँडा भित्र लजाइ फूल को थुँगा पनि wahh wahh yo lines man paryo :P
सिरियसली भन्नु पर्दा, अती सुन्दर कबिता राहुलदाइ -- शिर्शक नै कस्तो सुन्दर रहेछ भन्या
झरी मा परी :)
|
|
|
Rahuldai
Please log in to subscribe to Rahuldai's postings.
Posted on 07-23-08 7:39
PM
Reply
[Subscribe]
|
Login in to Rate this Post:
0
?
|
|
OcRam जी धन्यवाद तपाईं को प्रतिकृया को लागि।
स्याङ्जाली जी
धन्यवाद तपाईं को प्रतिकृया को लागि।
प्रेरणा जी,
केटा पार्टी र केटी पार्टी छुट्ट्याएर लेखेको जस्तो लागेन । तै पनि दृष्टि आ-आफ्नो हुन्छ। जे जसो भए पनि चिलिम ब्रेक को गन्थन लाई मन पराइ दिनु भएकोमा धन्यवाद।
|
|
|
nAyAni
Please log in to subscribe to nAyAni's postings.
Posted on 07-23-08 8:17
PM
Reply
[Subscribe]
|
Login in to Rate this Post:
0
?
|
|
राहुलभाई तपाईं को कबित साह्रै राम्रो लाग्यो। मैले पनि त्यस्को उत्तरमा २,४ लाइन लेखेको छु hope you like it
यो झरिमा रुझिरहने म नै हुँ सुन्दरी
मोहित भइ लोभिएर नहेर न त्यसरी
प्रकृतिको श्रीजना रूप राम्रो सुनखरी
लोभि नजर चीयाउछन लुकाउ म कसोगरी
यी गाजलु आँखाभित्र सपना छन अनेक थरी
टाढा बसी हेरीरहन्छौ बोलाउ म के भनी
|
|
|
Harka_Bahadur
Please log in to subscribe to Harka_Bahadur's postings.
Posted on 07-23-08 8:24
PM
Reply
[Subscribe]
|
Login in to Rate this Post:
0
?
|
|
wrong thread
Last edited: 23-Jul-08 08:24 PM
|
|
|
prabhat41
Please log in to subscribe to prabhat41's postings.
Posted on 03-28-11 11:40
PM [Snapshot: 1506]
Reply
[Subscribe]
|
Login in to Rate this Post:
0
?
|
|
|
|